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बोलूँ ? खेल करने ही दो, अभी खेल करते करते गिरकर अपने आप मर जावेगा ! "
इधर, नट - कन्या नीचे खड़ी खड़ी विचार करती है, कि - " अहो ! इलाची ने मेरे लिये अपने माता-पिता छोड़ दिये, अपना सुख-वैभव छोड़ा और एक दिन अपने हाथों से वह दूसरों को दान देता था, उसके बदले आज दूसरों से दान लेने को हाथ लम्बा कर रहा है ! अब तो यदि राजा प्रसन्न होकर इसे इनाम दे दें, तभी अच्छा है । मेरे माता-पिता शीघ्र ही इसके साथ मेरा लग्न कर दें और मैं इसके साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत
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करूं ।
इलाची ने रस्सी पर से उतरकर राजा को प्रणाम किया । राजा ने कहा - " नटराज ! तुम बड़े चतुर हो, किन्तु मैं तुम्हारा खेल न देख सका। क्योंकि मेरा ध्यान इस समय राज्य के कार्यों की चिन्ता में लगा था ।
इलाची फिर खेल करने लगा । नट लोग, जोरजोर से अपने ढोल बजाने लगे और 44 अय-भला ! अय- भला ! " की ध्वनि करके उसमें जोश भरने लगे । इलाची ने बड़ा विचित्र खेल किया और फिर नीचे उतरकर राजा को सलाम किया। राजा ने कहा - "नायक ? ज्यों ही तुमने खेल शुरू किया, त्यों ही मैं एक जरूरी बात करने
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