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इलाची नटलोगों के साथ देश-परदेश भ्रमण करने लगा । उसका सारा वेश इस समय कुछ विचित्र - सा हो गया । बास में एक ढोलक बांधकर, उसे अपने हाथ में लेता और अपने कन्धे पर एक कावड़ रखता । इस कावड़ के एक पिटारे में मुर्गे रहते और दूसरे में साज-सामान ।
कहाँ बड़े-बड़े महलों और भारी - सम्पत्ति का स्वामी और कहाँ पिटारे में सामान रखनेवाला ! कहाँ नौकरों से सब काम करवानेवाला और कहाँ कन्धे पर कावड़ उठानेवाला ! किन्तु उसके सिर जो धुन सवार थी, उसके सामने उसे और कुछ भी न दिखाई देता था ।
इसी दशा में, बारह - वर्ष व्यतीत हो गये। दोनों प्रेमीप्रेमिका साथ ही साथ रहते, किन्तु एक दूसरे की तरफ आँख उठाकर भी न देखते । इलाची अब सारी नट - विद्या सीख गया । उसके खेल देखकर, लोग दातों तले उँगली दबाते थे । अब उसने विचार किया कि वेणातट नगर जाकर, वहां के राजा को अपने खेल से प्रसन्न करूँ ।
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अपने साथियों को लेकर वह वेणातट गया और वहां राजा से मिला ।