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रात हुई, सब लोग सो गये। चारों तरफ सन्नाटासा छा गया। __इलाची, ऐसे समय में उठा और कपड़े पहनकर तयार होगया । घर या बाहर न तो कोई जाग ही रहा था और न किसी ने करवॅट ही बदली।
ज्यों ही उसने बाहर जाने को पैर उठाया, त्यों ही माता-पिता की याद हो आई। उसने सोचा-“ अहा, मेरी प्यारी-माता ! प्रेम की मूर्ति पिता ! इन सब को जब यह मालूम होगा, कि इलाची भाग गया, तब कितना दुःख होगा ? अतः मुझे इस तरह से चले तो कदापि न जाना चाहिये !" यह विचारकर वह ज्यों ही लौटने लगा, त्यों ही उसे दिन को देखी हुई उस नट-कुमारी की याद हो आई । उसने सोचा-" अहा ! कैसा सुन्दर-स्वरूप था ! चाहे जो हो, किन्तु उस कन्या से मुझे विवाह अवश्य करना चाहिये । मा-बाप को थोड़े-दिनों तक दुःख तो होगा, किन्तु फिर सब भूल जायँगे। तो ठीक है, मैं जाकर नट लोगों में मिल जाता हूँ।"
यों सोचकर इलाची चला और नटलोगों के झुण्ड में जा मिला । सबेरे जल्दी उठकर, नटलोग उस नगर से दूसरी जगह चले गये।