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जवान लड़का था, जिसका नाम था - इलाची । अपने मकान के नीचे नटों का खेल होते देख, इलाची ने खिड़की में से अपना सिर निकाला ।
वहाँ क्या देखा ?
एक नट ने अपने पैर में घुघरू बाँध रखे हैं और दोनों हाथों में एक बास लेकर उस रस्सी पर चल रहा है। नीचे नटों का झुण्ड 66 अय भला ! अय भला ! " की ध्वनि कर रहा है । इस झुण्ड में अत्यन्त सुन्दरी एक नवयुवती - कन्या भी है ।
इस कन्या को देखते ही इलाची सिहर उठा और बड़े गौर से उसे फिर देखने लगा । उसने अपने चित्त में यह निश्चित किया, कि यदि मैं अपना विवाह करूँगा तो इसी कन्या के साथ, अन्यथा विवाह ही न करूँगा ।
: २ :
भोजन करने का समय होगया, किन्तु इलाची नहीं आया । अतः धनदत्त सेठ ढूँढने निकले कि इलाची कहाँ है ?
उन्होंने जाकर देखा, कि इलाची एक कोने में जैसे-तैसे सोया है और उसका चेहरा बिलकुल उतरा हुआ है ।