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इलाची-कुमार
ढम, ढम, ढम, ढम, ढोलक की आवाज़ सुनाई देने लगी।
पी......., पी....., पी..... करके शहनाई भी बजने लगी।
थोड़ी ही देर में, बाँस गाड़े गये और उन पर नटलोगों की रस्सियें बाधी जाने लगीं।
__" अय भला ! अय भला!" का शब्द करते हुए . नटलोग उनपर अपना खेल करने लगे।
इलावर्धन नगर के लोग इस खेल को देखने के लिये, नगर के चौक में झुण्ड के झुण्ड एकत्रित होने लगे। इस चौक के नुक्कड़ पर एक सुन्दर-महल बना हुआ था, जिसमें सुन्दर-सुन्दर झरोखे लगे थे, अच्छी-अच्छी खिड़किये लगी थीं और उस मकान की दीवारें और छतें तो मानों कारीगरी का भण्डार ही हों । धन-धान्य सम्पन्न धनदत्त-सेठ इस महल में रहते थे। इनके एक