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________________ २२ किन्तु इस राजकुमारी के दुःख के सामने मेरा वह दुःख किस गिनती में हैं ! "" राजा-रानी भी यह सुनकर आश्चर्य चकित रह गये । रानी बोली - " अरे ! धारिणी तो मेरी बहिन लगती है ! तू उनकी पुत्री होने के कारण मेरी भी पुत्री हैं ! चल बेटा ! मेरे साथ चल और आनन्दपूर्वक रह । चन्दनबाला मृगावती के साथ राजमहल को गई । वहां पहुंचकर चन्दवाला को अपनी प्यारी माता की याद हो आई और उनका यह मधुर उपदेश याद हो आया, जो उन्होंने मन्दिर में दिया था : “ ये राजमहल के सुखवैभव क्षणिक प्रलोभनमात्र है । उनमें भला यह शान्ति कैसे मिल सकती है, जो श्री जिनेश्वर देव के मुख पर दिखाई दे रही है ? अहा, इनके स्मरण करने मात्र से दुःख - सागर में डूबे हुए को भी शान्ति मिलती है । बेटा ! इनका पवित्र - नाम कभी भी न भूलना । "" चन्दनबाला राजमहल में रहती, किन्तु उसका चित्त सदैव भगवान – महावीर के ही ध्यान में रहता था । वह न तो वहां के वस्त्राभूषणों में लुभाती थी और न वहां के मेवा-मिठाइयों में ही। वह न तो बाग बगीचों को
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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