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राज पधारे । उन्होंने देखा कि मेरी सारी-शर्ते यहां ठीक है, किन्तु केवल एक बात की कमी है। चन्दनवाला के नेत्रों में आंसू नहीं हैं । यह देखकर वे पीछे लौट चले।
चन्दनबाला ने देखा कि अतिथि आकर बिना भिक्षा लिये ही वापस जा रहे हैं, अतः उसे बड़ा-दुःख हुआ। नेत्रों में आँसू भरकर वह कहने लगी-“कृपा. नाथ ! आप पीछे क्यों जा रहे हैं ! मुझ पर कृपा कीजिये
और ये उर्दके उबले हुए दाने ग्रहण कीजिये । क्या मुझे इतना भी लाभ न मिलेगा ?"। योगिराजने देखा कि चन्दनवाला के नेत्रों में आँसू भर आये हैं, अतः उन्होंने अपने हाथ लम्बे कर दिये । चन्दनवालाने, वह उद की घूघरी उन्हें बहरा दी।
ये योगिराज थे कौन ? ये थे—महायोगी प्रभु-महावीर ।
इसी समय चन्दनबाला की बेडिये टूट गई। सिर पर सुन्दर बाल हो आये । सारी-प्रकृति में एक मुन्दर-आनन्द-सा छ गया !
सेठ जब लहार के यहा से वापस लौटे, तो चन्दनवाला को पहले ही की तरह देखकर बड़े प्रसन्न हुए।