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कौशाम्बा में एक महायोगी भिक्षा के लिये घूम रहे है । लोग उन्हे भिक्षा देना चाहते है, किन्तु वे योगिराज भिक्षा देनेवाले की तरफ देखकर वापस लौट जाते हैं।
यह क्यों ? वे किस कारण से भिक्षा नहीं लेते ?
ऐसा मालूम होता है, कि उन्होंने कुछ निश्चय कर लिया है, कि अमुक प्रकार भिक्षा मिलेगी, तभी लेंगे।
किन्तु आखिर ऐसा कौन-सा निश्चय है ? अरे ! वह निश्चय तो बड़ा ही कड़ा है।
"कोई सती और सुन्दर-राजकुमारी दासी बनी हुई हो, पैरों में लोहेकी बेडियां पडी हां, सिर मुंडा हुआ हो, भूखी हो, रोती हो, एक पैर देहरी के भीतर और दूसरा बाहर रखकर बैठी हो। ऐसी स्त्री सूप के एक कोने में रखी हुई उर्द की घुघरी यदि बहरावे, तो ही भिक्षा लेंगे।"
अहा ! कैसा कड़ा निश्चय है । - नगर में राजा-रानी और दूसरे सब लोग यह चाहते है कि अब यदि योगिराज पारणा कर लें, तो बड़ा ही अच्छा हो। . वे आज भी शहर में भिक्षा के लिये आये । जहां बैठी-बैठी चन्दनबाला विचार कर रही थी, वहीं वे योगि