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समान गर्म-हवा चल रही है। बेचारे पशु--पक्षी भी गर्मी से कष्ट पारहे हैं।
ऐसे समय में गर्मी से अकुलाकर सेठजी घर आये । घर आकर, उन्होंने इधर-उधर देखा, किन्तु पैर धोने के लिये कोई नौकर वहाँ हाज़िर न दिखाई दिया। चन्दनबाला इस समय वहीं खडी थी, वह सेठजी की इच्छा समझ गई। अत्यन्त -नम्र होने के कारण, वह स्वयं पानी लाकर पिता के पैर धोने लगी। पैर धोते समय उसकी काली-भँवर चोंटी छूट गइ और बाल नीचे कीचड़ में जा पडे । सेठ ने देखा कि चन्दनबाला के बाल कीचड़ में खराब हो रहे हैं, अतः उन्होंने लकडी से उठा लिया और प्रेम से बाँध दिया।
मूला सेठानी खिड़की में खडी खडी यह दृश्य देख रही थीं। यह देखकर उनके हृदय की शङ्का और अधिक पुष्ट होगइ। वे विचारने लगीं कि-"सेठने इसका जूडा बाधा, यही प्रेम की निशानी है । अतः मुझे समय रहते चेत जाना चाहिये । यदि म इस मामले को बढ़ने दूंगी, तो अन्त में यह मुझे ही दुःखदायी होगा।" ऐसा विचार कर वे नीचे आईं और सेठजी को भोजन कराया।
शेठजी ने भोजन करने के पश्चात् थोडी देर आराम किया और फिर बाहर चले गये।