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घर आकर सेठ ने अपनी स्त्री मूला से कहा"प्रिये ! यह हम लोगों की कन्या है, इसे अच्छी तरह रखना " । मूला उसे अच्छी तरह रखने लगी ।
वसुमती यहाँ घर जानकर ही रहने लगी और अपने मीठे - वचनों से धनावह सेठ तथा अन्य लोगों को आनन्द देने लगी । इसके वचन चन्दन के समान शान्ति देने वाले होते थे, अतः सेठ ने उसका नाम 'चन्दनबाला ' रख दिया ।
चन्दनबाला कुछ दिनों के बाद युवती हो गई । एक तो वह यों ही सुन्दरी थी, तिस पर युवा अवस्था ने उसके सौन्दर्य को और भी दूना कर दिया था ।
यह देखकर मूला सेठानी विचारने लगीं, कि“ सेठजी ने इसे अभी तो लड़की मानकर रखा है, किन्तु इसके रूप पर मोहित होकर, वे अवश्य इससे विवाह कर लेंगे । यदि ऐसा हो जाय, तो मानों मेरी ज़िन्दगी ही मिट्टी में मिल गई ।" ऐसे-ऐसे विचारों के कारण मूला सेठानी चिन्ता में पड़ गई ।
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ग्रीष्म ऋतु आई । सिर फाड़नेवाली गर्मी पड़ रही
है । मिट्टी के गोले के गोले हवा में उड़ रहे हैं। आग के
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