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की मारी यह बेचारी इस पिशाच के हाथ पड़ गई है । निश्चित ही, यह बेचारी और किसी नीच के हाथ पड़ जावेगी और कष्ट सहेगी । अतः मैं ही क्यों न इसे मुँह माँगे दाम देकर खरीद ल ! यह मेरे यहाँ रहेगी, तो मौका आने पर अपने माँ-बाप से मिल सकेगी और अपने ठिकाने पर पहुँच जावेगी । "
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यों सोच, उन्होंने मुँह माँगे दाम देकर वसुमती को खरीद लिया ।
धनावह सेठ ने वसुमती से पूछा - " बहिन ! तू किसकी लडकी है ? "
वसुमती यह सुनकर बहुत दुःखी हुई । उसके नेत्रों के सामने, उसके माता-पिता मानों दिखाई से देने लगे ! कहाँ तो एक दिन वह चम्पानगरी की राजकुमारी थी और कहा आज कौशाम्बी की सड़क पर बिकी हुई दासी ! वह कुछ भी उत्तर न दे सकी ।
धनावह सेठ ने जान लिया कि इस कन्या का कुळ बड़ा श्रेष्ठ है, अतः यह बतलाना नहीं चाहती। बेचारी को इस प्रश्न से बड़ा दुःख हुआ है, ऐसा मालूम होता है । यों सोचकर उन्होंने फिर कभी इस विषय में कोई प्रश्न न किया ।