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बढी मुन्दरी है, यदि मैं इसे बेंच लूं तो खूब रुपयो मिल जाये । अतः चलो, मैं इस बजार में इसे वेंच ही लूँ।" ____ वसुमती को वह बजार में लाया और बेचने को खड़ी कर दी। इसका रूप अपार था इस लिये जो भी इसे देखता वह चकित रह जाता। इसी तरह लोगों के जुण्ड के झुण्ड उसके आसपास इकट्ठे हो गये और उसकी कीमत पूछने लगे।
वसुमती को इस समय कैसा दुःख हुआ होगा! राजमहल में रहकर, सैंकड़ो दास-दासियों से सेवा करवानेवाली को आज सरे-बाजार बिकने का मौका आया! काल की गति कैसी विचित्र है ?
वसुमती नीचा मुँह करके खडी हो गई और मनही-मन जिनेश्वर से प्रार्थना करने लगी-" हे जगबन्धु ! हे जगन्नाथ ! जिस बल से आपने मुक्ति प्राप्त की है, उसी बलसे अब मेरे शरीर में प्रकट होकर, मेरे शील की रक्षा करो"।
इसी समय वहाँ एक सेठ आये, जिनका नाम था धनावह । वे प्रेम की मूर्ति ओर दया के भण्डार थे।
वसुमती को देखते ही वे विचारने लगे कि" अहो ! यह कोई भले-घर की कन्या है । किसी दुःख