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खैर, अब इस कुमारी को तो इगिज़ कुछ न कहना चाहिये । नहीं तो यह भी अपनी माँ की तरह प्राण छोड़ देगी।" यों सोच कर वह वसुमती का बड़ा सत्कार करने लगा।
जब वसुमती होश में आई, तब उस सवारने बडे मीठे-शब्दों में उससे कहा कि-" अरे बाला ! धीरज रख । जो कुछ होना था वह हो चुका, अब शोक करने से क्या लाभ ? तू शान्त हो, तुझे किसी भी तरह का कष्ट न होने पावेगा "
इस तरह, मीठे-शब्दों में आश्वासन देता हुआ वह वसुमती को लेकर कौशाम्बी आया ?
कौशाम्बी शहर तो मानों मनुष्यों का समुद्र सा था। उसके रास्तेपर मनुष्यों की अपार भीड़ रहती थी। देश-विदेश के व्यौपारी अपने-अपने काफिले लेकर वहाँ जाते और माल की अदला-बदली करते । वहाँ सभी प्रकार की वस्तुएँ बिकती थीं । अनाज और किराना बिकता, पशु-पक्षी बिकते और यहां तक कि उस नगर में मनुष्य भी बेचे जाते था। ... उस उँट-सवार ने विचार किया कि-" यह कन्या