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भोजन दूँगा, अच्छे-अच्छे वस्त्र पहनाऊँगा और अपनी
खी बनाऊँगा ।
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यह बात सुनते हो, धारिणी के सिर पर मानों वज्र गिर पड़ा ! वह विचारने लगी कि – “ अहो ! कैसा उत्तम मेरा कुळ : कैसा श्रेष्ठ मेरा धर्म और आज मुझे यह सुनने का समय आया ! ऐ प्राण ! तुम्हें धिक्कार है ! ऐसे अपवित्र शब्दों को सुनने के बदले तुम इस शरीरको क्यों नहीं छोड़ देते ? "
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शील ( सदाचार ) भङ्ग करके जीवित रहने की अपेक्षा इसी क्षण मर जाना अत्यन्त श्रेष्ठ है ! "
इन विचारों का धारिणी के हृदय पर बड़ा प्रभाव हुआ और वह लाश बनकर ऊंटनी पर से नीचे गिर पड़ी।
यह देखते हो वसुमती चिल्ला उठी कि - " ओ माता ! ओ प्यारी -- माता ! इस भयावने - जंगल में मुझे यम के हाथ सौंपकर तु कहां चली गई ? राज्य तो नष्ट हो ही चुका था, इस कैद की दशा में मुझे केवल एक तेरा हीं सहारा था, सो तु भी आज मुझे छोड़कर चल दी !" यों विलाप करते-करते वह वेहोश होगा |
उस सवार ने यह देखकर विचारा कि- " मुझे इस बहिन के ऐसे शब्द कहना उचित न था । किन्तु