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श्री ऋषभदेव
अब, लोग अपने ही हाथ से खेती करते और अनाज पैदा करते थे । किन्तु, हाथ से की जानेवाली खेती में कितने दिन सफलता मिल सकती थी ? अतः गाय, भैंस, घोड़ा इत्यादि जंगल में रहनेवाले जानवरों का पालना सिखलाया गया । अब तो लोग जानवरों से खेती कराने लगे, तथा गाय-भैंस आदि से दूध भी प्राप्त करने लगे ।
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पशुओं की सहायता से, खेती खूब होने लगी और अनाज भी खूब पैदा होने लगा । अब तो एक - दूसरे के माल से लेन-देन होने लगा और इस तरह व्यापार की नींव पड़ी। देखते ही देखते, व्यापार बहुत बढ़ गया ।
इस तरह, सब प्रकार के सुधारों का प्रारम्भ श्री ऋषभदेवजी ने किया, अतः वे मानवजाति के सर्वप्रथम - सुधारक माने जाने लगे ।
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अब श्री आदिनाथ, राज-पाट का उपभोग तथा आनन्द करने लगे । इसी दशा में उन्हें विचार आया कि मैंने मनुष्यों को कला तो सिखलाई, किन्तु धर्म की शिक्षा नहीं दी अतः अब उन्हें धर्म की शिक्षा 'देनी चाहिये | धर्म की शुरूआत दान से होती है, यह