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________________ माँ-बेटी दोनों ही सुन्दर वस्त्र पहनकर मन्दिर को जातीं और वहां अत्यन्त श्रद्धा और भाव पूर्वक वन्दन करतीं। मन्दिर की शान्ति देखकर वसुमती अपनी माता से कहती “ माताजी ! कैसा सुन्दर स्थान है ! अपने राजमहल में तो बडी गड़बड़ और दौड़-धूप लगी रहती है, उसके बदले में यहाँ कैसी परम शान्ति है ? मेरा तो यही जी चाहता है कि यहीं बैठी रहूँ और शान्ति के समुद्र समान इस प्रतिमा के दर्शन एक टक दृष्टि से सदा किया ही करूँ ।" वसुमती की यह बात सुनकर धारिणी कहतीं, कि--" बेटा वसुमती ! तुझे धन्य है, जो तेरे हृदय में ऐसी भावना उत्पन्न हुई । सत्य है, ये राजमहल के सुखवैभव क्षणिक - प्रलोभन मात्र हैं । उनमें भला यह शान्ति कैसे मिल सकती है, जो श्री जिनेश्वरदेव के मुख पर दिखाई देरही है ? अहा, इनके स्मरण करने मात्र से दुःख - सागर में डूबे हुए को भी शान्ति मिलती है । बेटा ! इनका पवित्र - नाम कभी भी न भूलना । " इस तरह माँ-बेटी की परस्पर बात-चीत होती और फिर घर आकर अच्छे अच्छे ग्रन्थों को पढ़तीं । दोनों इसी तरह आनन्द में दिन बितातीं ।
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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