________________
वसुमती सोनेके खिलौनोंसे खेलती हुई बड़ी होने लगी। माता-पिता को वह अत्यन्त प्रिय और सखीयों की तो मानों प्राण ही थी।
माता-पिताने जब देखा कि वसुमती अब काफी समझदार हो चुकी है तब उन्होने उसके लिये शिक्षक नियुक्त कर दिये । उन शिक्षकों से वसुमतीने लिखना, पढ़ना, गणित और गायन आदि की शिक्षा पाई । फलफूल पैदा करने के काममें वह खूब चतुर हो गई और वीणा बजानेकी कला में तो उसकी बराबरीका उस समय और कोइ था ही नहीं।
फिर उसे शिक्षा देनेके लिये धर्म-पण्डितों की नियुक्ति की गई। उनसे वसुमतीने धर्म सम्बन्धी गहराज्ञान प्राप्त किया। एक तो वह पूर्व-जन्म के शुभ-संस्कारोंसे युक्त थी ही, तिस पर सद्गुणो माता-पिता के यहाँ उसका जन्म हुआ। साथ ही विद्या पढ़नेकी रुचि ओर पढाने वालोंकी भी चतुरता। इन सब कारणोंसे वमुमतीका खूब विकास हुआ।
. वह प्रतिदिन सबेरे जल्दी उठ कर श्री जिनेश्वर देवका स्मरण करती। फिर माताके साथ बैठ कर पतिक्रमण करती। ज्योंही प्रतिक्रमण पूरा होता त्यों ही जिन-मन्दिर के घड़ी-घण्टोंकी आवाज सुनाई देती। अत: