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अब तक उन्होंने तुझ पर अपार प्रेम रखा और राज्य भी तुझे ही देने की उनकी इच्छा थी । "
यह सुनकर कोणिक के हृदय से वैर भाव दर होगया। उसे अपनी भारी-भूळ मालूम होगई । तत्क्षण उसने अपने पिता को कैदखाने से मुक्त करने और उनसे क्षमा माँगने का निश्चय किया । लुहार को बुलाने में देर होगी, ऐसा सोचकर वह स्वयं हाथ में लोहे के औजार लेकर जेल की तरफ दौड़ा ।
कोणिक को इस तरह दौड़ा आता देख चौकीदारों ने श्रेणिक को खबर दी, कि - " कोणिक अपने हाथ में लोहे के औजार लेकर दौड़े आ रहे हैं, अतः आज अवश्य ही आप की मौत होगी 1
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श्रेणिक ने विचारा, कि - " कोणिक अवश्य मुझे दुर्दशापूर्वक मारेगा, अतः यदि मैं स्वयं ही अपने आप सर जाऊं, तो अच्छा है " । यों सोच, उन्होंने अपने पास छिपाकर रखा हुआ हलाहल विष खालिया । तत्क्षण उनकी मृत्यु होगईं ।
कोणिक जब वहाँ आकर देखता है, तो पिता की लाश पड़ी नज़र आई । वह विचारने लगा, कि - " अरे रे ! यह क्या ? पिताजी से अन्त - समय में मुलाकात भी न हुई ! जब मुझे अपनी भूल मालूम हुई, तब तक पिताजी चल दिये ! ओफ ! मैं कैसा महादुष्ट हूँ, जिसके कारण