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उसने कोणिक से, श्रेणिक को मिलने की आवा माँमी । कोणिक इनकार न कर सका, अतः चेलमा प्रतिदिन पति से मिलने जाने लगो । जब वह पति से मिलने को जाती, तब अपने बालों को दवा के पानी से भिजो लेती और बालों के जुड़े में उर्द का एक लड्डू रख लेती थी। वह लड्डू अपने भूखे-पति को खिलाती और जूड़ा निचोकर पानी पिला देती । यह पानी पीने से राजा श्रेणिक को एक प्रकार का नशा-सा चढ़ जाता था, जिसके कारण चाबुकों की मार से कम तकलीफ मालूम होती थी।
कोणिक अपने पुत्र को बड़ा प्रेम करता था। एक बार उसने चेलणा से पूछा--" मावा! मेरे समान पुत्र का प्रेम क्या और भी किसी में है ?" । कोणिक की बात सुनकर चेलणा बोलो-" अरे दुष्ट ! तेरा पुत्रप्रेम किस गिनती में हैं ? तू पर्भ में आया, तभी मैंने जान लिया था, कि तू अपने बाप का शत्रु है । इसीलिये, तेरा जन्म होते ही मैंने तुझे घूरे में फिंकवा दिया था। किन्तु तेरे पिता का तुझ पर अपार-प्रेम होने के कारण, यह वात जानते ही वे दौड़े और तुझे उठा लिया । उस समय वेरी जो उंगली मुर्गी ने काट खाई थी, बह मुंह में लेकर उन्होंने तुझे रोते से चुप किया । इसके बाद