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पिताजी को अकाल-मृत्यु से मरना पड़ा! किन्तु अब क्या हो सकता है ? " । कोणिक अब बहुत दुःखी हुआ।
चेलणा को जब मालूम हुआ, कि श्रेणिक ज़हर खाकर मर गये, तव उसे भी अपार-दुःख हुआ। वह खूब शोक करने लगी। इसी समय, भगवान महावीर वहाँ पधारे । उनकी अमृतवाणी मुनकर चेलणा का मन शान्त हुआ। उसने समझ लिया, कि-" जहा मोह है, वहां निश्चय ही शोक भी है । अत: मोह को छोड़े बिना, शोक या दुःख कुछ भी कम नहीं हो सकता ।" यह सोचकर उसने सब मोह छोड़ दिया और साधु-जीवन की पवित्र-दीक्षा ले ली।
महाराजा चेटक की यह विद्वान-पुत्री और मगधदेश की महारानी-चेलणा, पवित्र-जीवन व्यतीत करने लगी । अबतक उसका जो प्रेम श्रेणिक पर था, वह अब पवित्रतापूर्वक बढ़कर सारे संसार के जीवों पर एक समान होगया। उसने तप और संयम से अपने जीवन को अत्यन्त-सुन्दर बना लिया । अन्त में अपनी आयु पूरी करके यह सती निर्वाण-पद को प्राप्त होगई ।
धन्य है महा-सती चेलणा को !
धन्य है भारतवर्ष की भूमि को आलोकित करनेवाली पवित्र-आर्याओं को !!
ॐ शान्तिः