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________________ इस समय किसी प्रकार क्रोध में है, अन्यथा ऐसा हुक्म कदापि न देते। मेरी सब माताएँ स्वभाव से ही सती हैं, उनमें कोई ऐसा दोष कैसे हो सकता है ? निश्चय ही, पिताजो को स्वयं कुछ भ्रम हो गया है। इसलिये मुझे तो ऐसा दुस्साहसपूर्ण कार्य कदापि न करना चाहिये। यह सोचकर, अभयकुमार ने हाथीखाने के पासवाले कुछ कमरों में आग लगवा दी और शहर में हल्ला मचवा दिया, कि-" राजा के अन्तःपुर में आग लग गई है " ! - उधर श्रेणिक ने प्रभु को वन्दन किया और फिर प्रश्न पूछा, कि-" हे भगवान! रानी चेलणा के एक पति है या अनेक ?" प्रभु ने उत्तर दिया-"केवळ एक । हे श्रेणिक ! उस सती पर कभी और किसी भी प्रकार का सन्देह न करना ।” श्रेणिक को भगवान के वचनों पर पूर्ण-श्रद्धा थी, अतः वे जान गये, कि मैंने बड़ी भयङ्कर-भूल की है। वे जल्दी-जल्दी गाँव में आये। वहाँ अभयकुमार सामने मिले । उनसे श्रेणिक ने पूछा-" अभय ! क्या किया ?" अभयकुमारने उत्तर दिया-" आपकी आज्ञा का ठीक-ठीक पालन किया गया है"। श्रेणिक ने कहा-" अरे मूर्ख ! मेरी अविचारपूर्ण आज्ञा का पालन
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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