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________________ हाय में बडे जोर से दर्द होने लगा । किन्तु इसी समय उसे एक विचार आया, कि-"एक मुनिराज इस समय भी नदी के किनारे पर खड़े हैं, उन्होने एक भी कपडा नहीं ओढ़ रखा है, फिर भला इस कड़ी-सही में उनको क्या दशा हुई होगी?" यह अन्तिम--वाक्य, चेलणा के मुँह से अकस्मात निकल पड़ा । इस समय, राजा श्रेणिक जाग रहे थे। वे रानी की यह बात सुनकर अपने मन में विचारने लगे, कि--" यह चेलणा इस समय किसका विचार कर रही है ? अवश्य ही इसका मन किसी और में लगा है ! ओहो ! जिसको मैं इतना प्रेम करता हूँ, वह भी दूसरे का विचार करती है ! बस, मुझे ऐसी रानियों की अब आवश्यकता नहीं हैं"। यो विचार करते हुए, राजा ने सारी रात बिता दी। प्रातःकाल होते ही, राजा ने अभयकुमार प्रधान को बुलाया और उन्हें आज्ञा दी, कि -"मेरा अन्तःपुर बिगड़ गया है, इसलिये तुम उसे अभी जलवा दो । खबरदार ! अपनी माता का मोहन आने पावे । " ठीक इसी समय नगर से बाहर बाग में भगवान--महावीर पधारे, अतः श्रेणिक उनके दर्शन करने को चले गये। अभयकुमार ने विचारा, कि-'पिताजी अवश्य
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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