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( ठपका) दियो, कि-" हे उत्तम कुलवाली ! क्या तुम्हें ऐसा करना शोभा देता है ? "। चेलणा ने कहा-"स्वामीनाथ ! यह पुत्र आपका वैरी है। इसके सभी लक्षण खराब हैं। ऐसे पुत्र का पालन में कैसे कर सकती हूँ? मेरी दृष्टि में, पति की अपेक्षा पुत्र अधिक प्रिय नहीं है।" राजा श्रेणिक फिर बोले-" चाहे जो हो, किन्तु तुम्हें इस का पालन-पोषण अवश्य ही करना पड़ेगा। हमलोगों से यह छोड़ा तो कदापि नहीं जासकता।" श्रेणिक की आज्ञा से, चेलणा उस बालक को पालने लगी।
इस बालक की एक उँगली मुर्गी ने काट खाई थी, अतः वह अधकटी ही रह गई । इस उंगली को देखदेखकर, लड़के उसे " कोणिक! कोणिक !" कहकर चिढ़ाते थे। कोणिक शब्द के मानी हैं-कटी-उँगलीवाला ।
चेलणा के और भी दो-पुत्र हुए। एक का नाम था हल्ल और दूसरे का विहल्ल । ये तीनों भाई, आनन्दपूर्वक पाले--पोसे जाकर बड़े होने लगे।
७: एक बार, राजा-रानी सोये हुए थे। सर्दी की रात्रि, तिस पर कड़ाके का जाड़ा ! योगायोग से चेलणा का एक हाथ रजाई में से बाहर निकल गया । एक तो कोमल हाथ, दूसरे भयङ्कर सर्दी; फलतः रानी के