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________________ गई। वह समझ गई कि इस गर्भ का बालक अपने पिता का वैरी है, अन्यथा ऐसा बुरा विचार आ ही कैसे सकता था? सवा-नौ महीने पूरे हुए। चेलणा के एक तेजस्वीपुत्र उत्पन्न हुआ। चेलणा ने तत्क्षण अपनी दासी को आबादी, कि-" दासी ! इस दुष्ट-चालक को किसी दूर जगह पर रख आ। यह अपने बाप का वैरी है। सापका पालना अच्छा नहीं होता।" दासी ने, बालक को उठा लिया और शहर से दूर एक अशोक वाटिका में ले गई। वहाँ एक पूरे ( कचरे के ढेर ) में उसे रख दिया। . दासी लौट रही थो, कि मार्ग में उसे राजा श्रेणिक मिल गये। उन्होंने दासी-से पूछा-" इधर कहा गई बी ?"दासी ने जो सच्ची बात थी, वह बसला दी। दासी की बात सुनकर, श्रेणिक तत्क्षण अशोक-वन में आये। वहाँ आकर देखते हैं, कि एक बालक जमीन पर पड़ा-पड़ा रो रहा है । उस बालक की एक उँगली मुर्गी ने काट खाई थी। यह दशा देखकर, राजा श्रेणिक को बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने तत्क्षण उस बालक को उठा लिया और उसकी कटी हुई ऊँगली-अपने मुंह में रख कर उसमें से खून चूस लिया । अब बालक कुछ शान्त हुआ। राजा श्रेणिक ने घर आकर चेलणा को उपालम्भ
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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