________________
ु
रहेंगी, फिर यह चिन्ता क्यों ? सुज्येष्ठा ने फिर कहा - " बहिन ! जब तक विवाह नहीं होता, तब तक तो चाहे हम तुम साथ-साथ रहें, किन्तु विवाह हो जाने के बाद तो अलग होना ही पड़ेगा " । चेलणा ने कहा - " नहीं बहिन सुज्येष्ठा ! ऐसा कभी नहीं हो सकता । हम दोनों एक ही पति से विवाह करेंगी, तो फिर अलग कैसे होना पड़ेगा ? जाओ जो तुम्हारा पति होगा, वही मेरा भी पति होगा । " सुज्येष्ठा बोली- - " तो तयार हो जाओ, मेरे पति मेरा मार्ग देखते हुए खड़े हैं " । चेलणा ने पूछा - " कहाँ ? " सृज्येष्ठाने उत्तर दिया – “ गुफार्मे " । इसके बाद - " सुज्येष्ठा ने सब हाल कह सुनाया ।
क
१५:
महाराजा - श्रेणिक सुरंग के मुँह पर अपने वीरयोद्धाओं के साथ खड़े थे । योद्धाओं ने श्रेणिक से कहा
66.
अधिक देर तक
महाराज ! शत्रु की राजधानी में ठहरना उचित नहीं हैं। अब तक कुछ भी मालुम नहीं होता, इसलिये हमें तो जान पड़ता है, कि इसमें जरूर ही कुछ दगा है " । श्रेणिक बोले-" इसमें दगा कुछ भी नहीं है, राजा चेटक की ये लड़कियें कभी दगा नहीं कर सकतीं " योद्धाओं ने फिर कहा- “ महाराज ! आप तो विश्वास करते हैं, किन्तु हमें तो इसमें दगा ही नज़र
**