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________________ कर सकती, तब वह चिन्ता में पड़ गई । यह देखकर उसकी सखी ने कहा-" बहिन ! आप चिन्ता क्यों करती हो ? हमलोग इस व्यौपारी को अपने हाथ में ले लेंगी, तो इसके द्वारा सारे कार्य सफल हो जावेगे"। सुज्येष्ठा ने कहा-" अच्छी बात है सखि ! तुम जाओ और कोई ऐसा उपाय करो, जिससे मेरा विवाह राजा श्रेणिक के साथ हो जाय"। सखी ने व्यौपारी से मिलकर एक उपाय ढूंढ निकाला, कि-नगर के बाहर से राजमहल तक एक गुफा खुदवाई जाय, अमुक दिन राजा श्रेणिक उस जगह आवें, मुज्येष्ठा वहा तयार रहे और श्रणिक उसे लेजायँ । ___ सब तयारियें हुई और दिन निश्चित किया गया। श्रेणिक थोड़े बहादुर-योद्धाओं के साथ वहाँ आ गये। इधर सुज्येष्ठा भी जाने को तयार हुई। इसी समय, सुज्येष्ठा को चेलणा की याद आई । उसने सोचा, कि चेलणा से यह बात छिपानी न चाहिये । वह चेलणा से मिलने गई । मुज्येष्ठा को देखकर चेलणा बोली-" बहिन ! आज उदास क्यों हो?" मुज्येष्ठा ने कहा-" बहिन ! तुम्हारे वियोग के विचार से "। चेलणा बोली-" बहिन ! मेरा वियोग कैसे? मैं और तुम तो साथ ही साथ है और साथ ही
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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