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गये और उनसे कहा-" सेठजी राजा श्रेणिक ! बीमार पड़े हैं। वैद्यलोगों ने बतलाया है, कि-'ये और किसी भी तरह से नहीं बच सकते । इनकी एक ही दवा है
और वह है-मनुष्य के कलेजे का सवा-तोला मांस । यदि यह दवा मिल जाय, तो राजा अच्छे होजायें ।' अतः, मैं आपके पास यही लेने को पाया हूँ।"
अभयकुमार की बात सुनकर, सेठ घबरा उठे और बोले-“ सरकार ! मुझसे पाच-हजार रुपये ले लीजिये
और मुझे जीवित रहने दीजिये। आप, किसी और से यह मांस ले लीजियेगा।"
इसी तरह, अभयकुमार सब सेठ-साहूकारों तथा अमीर-उमरावों के यहा धूमे, किन्तु किसी ने भी मांस न दिया और सब-के-सब रुपये-पैसे देकर छूट गये । अब, अभयकुमार को ढेर-की-हेर सम्पत्ति प्राप्त होगई । दूसरे ही दिन, उस धन को लेकर अभयकुमार राज-सभा में आये और बोले-"महाराज ! इतने अधिक धन के बदले में, सवा-तोला मांस भी नहीं मिलता" ! यह मुनकर सब दरबारीलोग लज्जित होगये। तब अमयकुमार ने फिर कहा--" मांस सस्ता अवश्य है, किन्तु वह केवल दूसरे का । अपने शरीर का मांस तो अधिकसे-अधिक मूल्यवान माना जाता है।" ...