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________________ २४ लाया। गुरुजी ने कहा-" महानुभाव ! तुम्हारा यह विचार ठीक है, हमलोग कल यहाँ से विहार कर देंगे"। . अभयकुमार, भगवान महावीर के बड़े भक्त थे। वे, जिस प्रकार राज्य-कार्य में चतुर थे, उसी प्रकार धर्मध्यान में भी बड़े कुशल थे। सदा, श्री जिनेश्वरदेव की पूजा करते और साधु-मुनिराज को वन्दन करते थे। उन्हें, मुनि के इस कष्ट का पता लगा, अतः वे अपने गुरु के पास आये और उनसे प्रार्थना की, कि-" हे नाथ ! कृपा करके कम से कम एक दिन तो आप और यहीं रुक जाइये, फिर चाहे सुखपूर्वक विहार करें" । गुरुजी ने. यह प्रार्थना स्वीकार कर ली। . दूसरे दिन अभयकुमार ने राजभण्डार में से तीन मूल्यवान-रत्न निकाले और शहर के बीच-चौक में आये। वहाँ पहुँचकर उन्होंने यह बात प्रकट करवाई, कि ये तीन मूल्यवान-रत्न हम देना चाहते हैं । यह सुनकर, लोगों के झुण्ड-के-झुण्ड वहाँ एकत्रित होगये और अभयकुमार से पूछने लगे-" हे मंत्री-महोदय ! ये रत्न आप किसे देंगे ? " । अभयकुमार ने उत्तर दिया-"ये रत्न उस मनुष्य को दिये जावेंगे, जो तीन चाजें छोड़ दे। एक तो ठण्डा पानी, दूसरी अग्नि, तीसरी स्त्री।" ... मनुष्यों ने कहा-"ये तो बड़ी मुश्किल बातें हैं ।
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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