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उन्हें मारने दौड़ें । किन्तु, अभयकुमार ने उन्हें रोककर कहा-" पिताजी ! ये अपने मिहमान हैं, इन पर आप किंचित भी क्रोध न कीजिये । मैं अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिये हो इन्हें यहाँ पकड़ लाया हूँ । अब, इन्हें सम्मानपूर्वक यहा से बिदा कर दीजिये।"
अभयकुमार की यह बात सुनकर, राजा श्रेणिक शान्त हुए और उन्होंने राजा चण्डप्रद्योत को इज्जत के साथ बिदा कर दिया।
एक लकड़हारा था । वह अत्यन्त गरीब था। एक बार उसने मुनिजी का उपदेश सुना, अतः उसे वैराग्य होगया । उसने दीक्षा ले ली और अपने गुरु के साथ राजगृही आया।
वहाँ बहुत से लोग उनकी पहली दशा को जानते थे, अत: वे उनका मजाक करने लगे और कहने लगे, कि-" इस दोस्त का जब कहीं ठिकाना न लगा, तब साधु होगया"। लोग, उनका और भी कई तरह से तिरस्कार करने लगे, अतः उन्होंने सोचा, कि जहाँ अपमान होता हो, वहाँ रहना उचित नहीं है।
उनहोंने अपना यह विचार अपने गुरुजी से बत