________________
ર૩
दूसरे दिन भी वह दासी आकर लौट गई और तीसरे दिन फिर आई। तब उन स्त्रियों ने कहा - "बहिन ! हमारे साथ हमारा एक भाई भी है । वह, आज से सातवें दिन बाहर चला जावेगा । उस समय महाराजा बड़ी समता से यहाँ पधार सकते हैं। "
दासी ने लौटकर चण्डप्रद्योत से यह बात कही, अतः वे सातवें दिन की प्रतीक्षा करने लगे ! इधर, अभयकुमार ने एक मनुष्य को पागल बनाया और प्रतिदिन उसे खाट में बाधकर वैद्य के यहाँ लेजाने लगे । मार्ग में, वह नकली - पागल चिल्लाता जाता, कि- " मैं राजा चण्डप्रद्योत मुझे ये लोग लिये जारहे हैं, कोई छुड़ाओ रे " ! लोग उसकी यह बात सुनकर हँसते ।
सातवें दिन, चण्डप्रद्योत अभयकुमार के यहाँ आये । अभयकुमार ने, उन्हें पकड़कर खाट में बाँध दिया और खाट उठवाकर बाहर की तरफ चले । चण्डप्रद्योत चिल्लाने लगे - " मैं, राजा चण्डप्रद्योत हूँ, मुझे ये लोग लिये जारहे हैं, कोई छुडाओ रे " ! लोग, यह चिल्लाहट सुनकर हँसने लगे । वे जानते थे, कि यह बेचारा पागल है, अतः रोज ही इस तरह चिल्लाया करता है !
I
अभयकुमार, चण्डप्रद्योत को राजगृही लाये । चण्डप्रद्योत को देखते ही राजा श्रेणिक बड़े क्रोधित हुए और