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अब, माँगने में जौर क्या बाकी रह गया था ? अभयकुमार की बात सुनकर, चण्डप्रद्योत बड़े विचार में पड़ गये । अन्त में उन्होंने कहा-" अभयकुमार ! तुम आज से स्वतन्त्र हो"। अभयकुमार आजाद होगये, किन्तु उज्जैन से जाते समय उन्होंने प्रतिज्ञा की, कि-"दिनदहाड़े जब राजा चण्डप्रद्योत को उज्जैन से पकड़ लेजाऊँ, तभी मैं सच्चा अभयकुमार हूँ"।
अभयकुमार, अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिये एक व्यौपारी बने और अपने साथ दो सुन्दर-स्त्रिये लेकर उज्जैन आये। वहाँ आकर,उन्होंने नगर की प्रधानसड़क पर एक मकान लिया। . ___ वे दोनों स्त्रियें, खूब शृङ्गार करके ठाट-बाट से घूमती रही और लोगों के चित्त हरण करती थीं । एक बार, राजा चण्डप्रद्योत ने भी उन स्त्रियों को देखा, और मोहित होगये । उन्होंने अपनी दासी के द्वारा उन स्त्रियों से कहलवाया, कि--" राजा चण्डप्रद्योत तुमसे मिलना चाहते हैं, वे कब आयें ?" । उन स्त्रियों ने कहा" अरे बहिन ! ऐसी बात क्यों कहती हो ? तुम्हारे मुंह से ऐसा कहना शोभा नहीं देता"। दासी उस दिन वापस चली गई।