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भगवान की पूजा करती, व्रत-उपवास करती और सारे दिन धर्म-चर्चा करती रहती। __एक बार, अभयकुमार मन्दिर में पूजा करने गये । वहाँ, उन्होंने इस श्राविका की भक्ति देखी, अतः वे बड़े प्रसन्न हुए । उन्होंने पूछा-" बहिन ! तुम कौन हो और कहाँ से आई हो ? " । वह वेश्या बोली-" भाई ! मैं उज्जैन की रहनेवाली हूँ, मेरा नाम है-भद्रा । मेरे पति का देहान्त होगया, लडके थे वे भी मर गये, इसलिये दोनों बहुओं को लेकर, मैं यात्रा करने निकली हूँ । किये हुए कौँ को भोगे बिना, कैसे छुट्टो मिल सकती है ?" ___अभयकुमार ने कहा-" बहिन ! आप आज मेरे ही यहाँ भोजन कीजियेगा"।
भद्रा-" किन्तु आज तो मेरे मेरेवास है"। अभयकुमार-" तो पारणा मेरे ही यहाँ करियेगा"।
भद्रा ने यह बात स्वीकार कर ली। दूसरे दिन उसने अभयकुमार को निमन्त्रण दिया । अभयकुमार ने भी उसे स्वीकार कर लिया और उसके यहाँ भोजन करने गये । उस श्राविका ने उन्हें बड़े प्रेम से भोजन करवाया। किन्तु, भोजन में उसने बेहोशी की दवा मिला दी थी, अतः अभयकुमार बेहोश हो गये । उस समय, उस धर्तिनी ने रस्सी से कुमार को बांध लिया और रथ में डालकर चल दी।