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की दासिये भी उन्हीं के यहाँ सामान खरीदने आने लगीं।
जब दासियें वस्तु खरीदने आतीं, तब धनसेठ उस चित्र की पूजा करने लगते । उन्हें यह करते देख, एक दिन एक दासी ने उनसे पूछा-" धनसेठ ! आप किसकी पूजा करते हैं ?' घनसेठ ने उत्तर दिया-" अपने देव की"। दासी ने कहा-" इन देव का नाम क्या है ?" धनसेठ ने उत्तर दिया-“श्रेणिक" । दासी ने आश्चर्य में भरकर फिर पूछा-" मैंने सभी देवताओं के नाम सुने हैं, किन्तु उनमें श्रेणिक नाम के कोई देव न थे । क्या ये कोई नये देव हैं ?"
धनसेठ ने पूछा-"हाँ, तुम अन्तःपुर की स्त्रियों के लिये मगधदेश के महाराजा-श्रेणिक सचमुच नये-देव
दासी ने कहा-"क्या महाराजा-श्रेणिक इतने अधिक सुन्दर हैं ? ऐसा सुन्दर-स्वरूप तो आजतक मैंने कभी देखा ही नहीं है !" यों कहकर वह चली गई।
उस दासी ने आकर, यह बात राजा चेटक की पुत्री सुज्येष्ठा से कही । सुज्येष्ठा की इच्छा उस चित्र को देखने की हुई। उसने वह चित्र मँगवाया और उसे देखते ही वह राजा श्रेणिक पर मोहित होगई। उसने