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अभय की यह बात सुनकर, राजा श्रेणिक बड़े प्रसन्न हुए। वे, बड़ी धूम-धाम और गाजे-बाजे से नन्दा को शहर में ले आये और उन्हें अपनी पटरानी बनाया। अभय को उन्होंने अपने प्रधानमंत्री का पद दिया ।
जहाँ अभय के समान बुद्धिमान-प्रधान हों, वहाँ किस बात का दुःख रह सकता है: राजा श्रेणिक को जब कभी किसी आपत्ति का सामना करना पड़ा, तभी अभय ने अपनी बुद्धि से उस सङ्कट को दूर कर दिया। वे, सदैव राजा की सहायता के लिये तयार रहते थे।
एक बार राजा श्रेणिक चन्ता में बैठे थे। उसी समय अभयकुमार वहाँ आये । राजा को चिन्तित देख, उन्होंने पूछा-"पिताजी! आप चिन्ता में क्यों बैठे हैं ?" श्रेणिक ने उत्तर दिया-"वैशाली के राजा चेड़ा ने मेरा अपमान किया है। उनके दो सुन्दर-कन्याएँ हैं, उनमें से एक के साथ मैंने अपना विवाह करने की इच्छा प्रकट की । उत्तर में उन्होंने कहा, कि-'तुम्हारा कुल मेरे कुल की अपेक्षा हलका है, अतः मेरी कन्या तुम्हें नहीं दी जासकती अभय ने कहा-“ओहो ! यह कौन बड़ी-बात है ? छ: महीने के भीतर हो मैं उन दोनों कुमारियों का विवाह आपके साथ करवा दूंगा। पिताजी ! आप ज़रा भी चिन्ता न कीजिये।"