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श्रेणिक-" उनकी नन्दा नामक पुत्री गर्भवती थी, उसके क्या हुआ था ?"
अभय-"महाराज, उनके पुत्र हुआ था "। श्रेणिक-" उस लड़के का नाम क्या रखा गया?"
अभय-" महाराज ! सुनिये । आप जिस समय भयङ्कर-युद्ध कर रहे हों, उस समय आपका शत्रु आपसे भयभीत होजाय । फिर. वह अपने मुँह में एक तिनका ले और आपके सामने आवे । बतलाइये, कि उस समय वह आपसे क्या माँगेगा?
श्रेणिक-"अभय"।
अभय-"महाराज ! तो उसका भी यही नाम है। उसकी और मेरी बड़ी गाढ़ी-मित्रता है। किन्हीं मित्रों के मन तो एक होता है, किन्तु शरीर अलग-अलग होते हैं। परन्तु मेरा और उसका मन भी एक है और शरीर भी एक ही है।"
श्रेणिक-" तो क्या तुम स्वयं अभय हो ?" अभय-"हा पिताजी! आपका सोचना ठीक है। श्रेणिक-"तो नन्दा कहाँ और किस तरह है ?"
अभय-" पिताजी ! वे नगर के बाहर एक भलेआदमी के यहाँ ठहरी हुई हैं और आपके वियोग में अत्यन्त दुःखी हैं।"