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नन्दा और अभय, दोनों राजगृह आये और वहाँ आकर एक मनुष्य के यहाँ उतरे। इसके बाद, अभय शहर की शोभा देखने निकला । वहाँ उसने एक स्थान पर बहुत से मनुष्यों की भीड़ जमा देखी । यह देखकर अभय ने विचारा, कि आखिर ये लोग यहाँ क्यों इकट्ठे हुए हैं ? अवश्य ही कोई देखने काबिल बात यहाँ होगी । अच्छा, मैं स्वयं ही पूछकर देखूँ, कि आखिर मामला क्या है ?
उसने भीड़ के पास जाकर एक बूढ़ेसे पूछा" बाबा यहाँ क्या बताशे बाटे जारहे हैं ? "
बूढ़े ने कहा--" भाई ! तुझे बताशे बहुत अच्छे लगते हैं, किन्तु यहाँ तो बताशों से भी कहीं अच्छी चीज़ बाटी जारही है "।
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अभय
बूढ़ा - " वह है, महाराजा श्रेणिक का प्रधानमंत्रीपद । उनके यहाँ प्रधानमंत्री का पद आजकल खाली है। यों तो उनके यहाँ चार सौ निम्नानवे कार्यकर्ता हैं, किन्तु उनमें से एक भी ऐसा नहीं है, जो प्रधानमंत्री के पद का कार्य कर सके । उस स्थान पर तो वही मनुष्य काम कर सकता है, जो बुद्धि का भण्डार हो । यही कारण है, कि राजा ने ऐसे मनुष्य की खोज करने के लिये,
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वह क्या ?