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________________ दिखलाओ, मैं देखूं तो सही, कि उस चिट्ठी में आखिर लिखा क्या है ? " माता ने वह चिट्ठी दे दी, उसे पढ़कर बोला - "माँ, आप चिन्ता न कीजिये, मेरे राजगृही के राजा हैं !” अभय फिर पिता तो नन्दा ने बड़े आश्चर्य से पूछा - " क्या सचमुच तेरे पिता राजगृही के राजा हैं ? " अभय -“हाँ, इस चिट्ठी का ऐसा ही अर्थ है " | नन्दा, यह सुनकर बड़ी प्रसन्न हुई । किन्तु इसके बाद ही, यह सोचकर वह बहुत दुःखी होगई, कि मैं ऐसे अच्छे- पति के वियोग में यहाँ पड़ी पड़ी दिन बिताती हूँ । अभय ने, अपने जीवन में नन्दा को पहली ही बार इतनी दुःखी देखा था, इसलिये उसे भी बड़ा दुःख हो आया। वह कहने लगा--" माँ ! आप ज़रा भी चिन्ता न कीजिये; चलो, हमलोग राजगृही को चलें, वहाँ अवश्य ही मेरे पिताजी से मुलाकात होगी " । : २ : राजगृही, उस काल में मगधदेश की राजधानी थी । उसकी शोभा का वर्णन नहीं किया जासकता । उस नगर के महलों, मन्दिरों, बाजारों तथा चौकों की सुन्दरता अपार थी ।
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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