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यह बात सुनकर नन्दा अत्यन्त दुःखी हो उठी और नेत्रों में आसू भरकर यों कहने लगी :
"सुन बेटा ! एक बार यहाँ एक मुसाफिर आये ।
सब तरह से वे अतः पिताजी ने अभी विवाह को
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वे, रूप, गुण तथा तेज को खान थे। बड़े प्रतापी और योग्य मालूम हुए, उन्हीं के साथ मेरा विवाह कर दिया। कुछ ही दिन बीते थे, कि एक दिन परदेश से कुछ ऊँटसवार आये। उनमें से कुछ सवार नीचे उतरे और तुम्हारे पिताजी को एकान्त में बुलाकर उनसे कुछ बातचीत की। उन सवारों की बात सुनकर, तुम्हारे पिता तत्क्षण जाने के लिये तयार हुए। उन्होंने मुझ से कहा - " मेरे पिताजी मृत्यु-शय्या पर पड़े हैं, अतः मैं उनसे मिलने जाता हूँ । तुम अपने शरीर की रक्षा करना और अच्छी तरह रहना । " यह कहकर उन्होंने मुझे एक चिट्ठी दी और आप उन आये हुए सवारों के साथ चले गये। वे जब से गये, तब से फिर नहीं लौटे । वर्षे व्यतीत होगये, प्रतिदिन सूर्य उदय होकर अस्त होजाता है, किन्तु प्यारे बेटा अभय ! इतने अधिक इन्तिजार के बाद भी आजतक उनका कुछ पता नहीं है ।
अभय ने माता से कहा - "माँ, मुझे वह चिठ्ठी