SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२ छली की हुई भूलों को याद करके रो मत । शान्तिपूर्वक अपने जीवन का विचार कर और जो बात तुझे कल्याणे. कारी प्रतीत हो, उस पर अमल करना शुरू कर । दृढ़प्रहारी बोला--प्रभो ! मैं महा-पापी हूँ। आज ही मेरे हाथ से चार-हत्याएँ हुई हैं और वे भी एक साधारण बात पर । अब मेरा क्या होगा ? मुनि ने कहा--भाई ! घबरा मत, साधु-जीवन की दीक्षा ले और संयम तथा तप की आराधना कर। निश्चय हो तेरा कल्याण होगा। दृढ़पहारी ने उसी स्थान पर दीक्षा ले ली और उसी क्षण निश्चय किया कि-" जब तक ये चार हत्याएँ मुझे याद आती रहेंगी-जब तक इनकी स्मृति मुझे रहेगी, तब तक मैं अन्न या पानी कुछ भी ग्रहण न करूंगा। दृढ़पहारी शैतान से बदलकर अब साधु होगये। वे नगर के दरवाजे पर ध्यान धरकर खड़े होगये। लोग, उधर से आते-जाते हुए कहते—“ यह बड़ा दुष्ट और बुरे-कामों का करनेवाला है । इस हत्यारे को खूब मारो।" यों कहकर लोग ईंट-पत्थर फेंकते, कोई लकड़ी से मारता और कोई दूसरी तरह कष्ट देता। किन्तु दृढ़प्रहारी शान्त-चित्त से यह सब सहन कर लेते।
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy