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छली की हुई भूलों को याद करके रो मत । शान्तिपूर्वक अपने जीवन का विचार कर और जो बात तुझे कल्याणे. कारी प्रतीत हो, उस पर अमल करना शुरू कर ।
दृढ़प्रहारी बोला--प्रभो ! मैं महा-पापी हूँ। आज ही मेरे हाथ से चार-हत्याएँ हुई हैं और वे भी एक साधारण बात पर । अब मेरा क्या होगा ?
मुनि ने कहा--भाई ! घबरा मत, साधु-जीवन की दीक्षा ले और संयम तथा तप की आराधना कर। निश्चय हो तेरा कल्याण होगा।
दृढ़पहारी ने उसी स्थान पर दीक्षा ले ली और उसी क्षण निश्चय किया कि-" जब तक ये चार हत्याएँ मुझे याद आती रहेंगी-जब तक इनकी स्मृति मुझे रहेगी, तब तक मैं अन्न या पानी कुछ भी ग्रहण न करूंगा।
दृढ़पहारी शैतान से बदलकर अब साधु होगये। वे नगर के दरवाजे पर ध्यान धरकर खड़े होगये। लोग, उधर से आते-जाते हुए कहते—“ यह बड़ा दुष्ट
और बुरे-कामों का करनेवाला है । इस हत्यारे को खूब मारो।" यों कहकर लोग ईंट-पत्थर फेंकते, कोई लकड़ी से मारता और कोई दूसरी तरह कष्ट देता। किन्तु दृढ़प्रहारी शान्त-चित्त से यह सब सहन कर लेते।