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अपनी तलवार से ब्राह्मण का सिर काट डाला । लड़के चिल्लाने लगे और स्त्री थर-थर काँपने लगी । वहीं ब्राह्मण की एक गाय बँधी थी । उससे यह दृश्य न देखा गया । वह क्रोधित हुई और पूँछ ऊँची करके सीधी हारी पर दौड़ी।
किन्तु दृढ़महारी तो वज्र - हृदय था, उसने अपने जीवन में भय का कभी नाम भी न जाना था । फिर भला वह इस गाय से क्या डर सकता ? गाय के नज़दीक आते ही उसने तलवार का प्रहार किया, जिससे गाय का सिर भी धड़ से अलग होगया ।
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स्त्री से यह सब न देखा गया वर्षा करने लगी और गिरती - पड़ती मने दौड़ी। उस बेचारी को क्या पता था हो जावेगी ? दृढप्रहारी को स्त्री पर बड़ा क्रोध आया, अतः उसने अपनी तलवार से उस पर भी आघात किया।
तलवार ठीक स्त्री के पेट पर पड़ी। घाव के लगने से जमीन पर ढेर ही पेट का बच्चा भी मर गया !
वह गालियों की दृढ़प्रहारी के साकि मेरी भी मौत
गर्भवती स्त्री उस होगई । स्त्री के साथ
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ज्यों ही ये चार - हत्याएँ हुईं, त्यों ही दृढ़पहारी के चित्त में आत्मग्लानि पैदा हुई । उसने सोचा- “अरे, मेरे