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खोर खावेंगे"। ब्राह्मण ने उन्हें खुव समझाया किन्तु बालक क्या समझ सकते थे ? अन्त में वह ब्राह्मण कुछ घरों में घूमा और दूध चाँवल तथा शकर एकत्रित की । इस सामग्री से खीर बनाने की आज्ञा दे, ब्राह्मण ने ब्राह्मणी से कहा-"खीर बनकर जब तयार होजाय, तब उसे उतारकर रख देना, मैं नदी से स्नान करके अभी आता हूँ"। यों कहकर ब्राह्मण नहाने चला गया।
इतने ही में दृढ़प्रहारी के गिरोह ने गाँव में प्र. वेश किया । लोग त्रास के मारे भयभीत हो-होकर भागे। सब डाकू अलग-अलग जगहों में लूट-पाट करने लगे। इनमें से एक डाकू उस ब्राह्मण के यहाँ भी जा पहुँचा। किन्तु वहाँ लूटने के लिये क्या रखा था ? उस डाकू ने वह तयार की हुई खीर देखी और उसे ही लेने को झपटा।
चोर ने खीर का बर्तन उठा लिया, यह देखकर बच्चे रोने-चिल्लाने लगे। इतने में ब्राह्मण आगया । वह देखता है कि चोर ने खोर उठा ली और बच्चे खीर छिन जाने के कारण रोते-चिल्लाते हैं। यह दृश्य देखकर उसे बड़ा क्रोध आया। वह एक मोटा-सा डण्डा लेकर दौड़ा और उस डाकू से मार-पीट करने लगा।
ये दोनों आपस में जिस समय मार-पीट कर रहे थे, उसी समय वहाँ दृढ़प्रहारी आ पहुँचा । उसने