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आगे बढ़ने पर रास्ता इससे भी भयङ्कर आया । बड़ी-बड़ी चट्टानें और जोर से बहनेवाले झरने आये । दुर्धर ने इन्हें बड़ी मुश्किल से पार किया। और आगे बढ़ने पर उसने देखा कि वहाँ झाड़ी हद से ज्यादा है । यद्यपि सूर्यनारायण संसार में अपना प्रकाश फैलाये हुए थे, तथापि उस झाड़ी में अँधेरा ही अँधेरा था । चलतेचलते उसे जंगल में ही रात होगई ।
रात्रि होजाने के कारण दुर्बर एक झाड़ पर चढ़ गया और वहीं रात बिताने का विचार किया। थोड़ी ही देर में, उसे जंगली जानवरों का शब्द सुनाई दिया । कभी सिंह की गर्जना, तो कभी बाघ की डकार । कभी सियार का चिल्लाना और कभी चीते की आवाज़ | इसी तरह सारी रात जंगली जानवर आये और गये । दुर्धर ने उन्हें देखते ही देखते सारी रात व्यतीत की ।
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सबेरा हुआ । जंगली जानवर अपने-अपने स्थानों में जा छिपे । पक्षीगण वृक्षों पर गीत गाने लगे । अब दुर्धर नीचे उतरा और फिर आगे चलने लगा ।
थोड़ी ही देर में, भीलों के झोंपडे दिखाई दिये । उन्हें देखकर दुर्धर को बड़ी प्रसन्नता हुई । वह यहीं आने के लिये तो निकला ही था । वह ज्यों ही कुछ और आगे बढ़ा त्यों ही उसे कुछ भील मिले। वे भील