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आगे चलकर उन्नति कर सकोगे। तुम्हारा कल्याण होगा और लोग तुम्हारी प्रशंसा भी करेंगे।" किन्तु वहाँ इस उपदेश को सुनता कौन था ? जो बात लोग कहते, उसे एक कान से सुनकर दूसरे कान से बाहर निकाल देता था।
चोरी करते-करते जितने भी साथी मिले, वे सब के सब छटे हुए बदमाश । अतः वह खूब बिगड़ा। शराब पीता, मांस खाता और रंडीबाजी भी करता।
लोगों को उससे बड़ा ही कष्ट पहुँचने लगा। राजा को जब यह हाल मालूम हुआ, तो उन्होंने हुक्म दिया कि-"उस दुष्ट को उलटे-गधे पर बैठाओ, सिर मुंडवाकर उस पर चूना पुतवा दो । मुँह पर कालीस्याही लगाओ, गले में फटे-जूतों का हार पहनाओ
और फूटी-हण्डियें बजाते हुए सारे शहर में घुमाकर बाहर निकाल दो।"
राजा की आज्ञा का पालन किया गया, दुर्धर का जलूस निकला । साथ ही साथ यह घोषणा की गई, कि-'जो कोई दुर्धर के समान बुरे-कार्य करेगा, उसे ऐसा ही फल मिलेगा"। लोगों ने उस पर धिक्कार की वर्षा की। वह बुरी हालत में गाँव से बाहर निकाल