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सहित चलता हूँ, तेरे को भी चलना हो, तो बाहर निकल ।" शालिभद्र के मन में व्रत लेने का जोश तो था ही, ऐसे ही समय में धन्ना की यह बात सुनी। इस कारण उसका जोश बढ़ गया ।
इतने में ही समाचार मिला, कि भगवान-महावीर समीप के पहाड़ पर पधारे हैं। यह समाचार सुनकर धन्ना और शालिभद्र दोनों को बहुत आनन्द हुआ। धन्ना ने अपनी स्त्रियों सहित दीक्षा ली। शालिभद्र ने भी आकर दीक्षा ले ली।
अब धन्ना और शालिभद्र बड़े विकट-तप करने लगे। किसी समय एक मास का उपवास करते, तो किसी समय दो मास का उपवास करते । किसी समय तीन-मास का और किसी समय चार-मास का उपवास करते । इस प्रकार वे धन्ना-शालिभद्र, जो पहले बड़े विलासी थे, अब महान् तपस्वी हुए।
दोनों महान-तपस्वियों ने, बहुत समय तक तप किया और अपने मन तथा वचन को बहुत पवित्र बनाया। अन्त में महा--तपस्वी की ही भाति, उन्होंने अपना जीवन समाप्त किया।
धन्य है वीर धन्ना को! धन्य है वीर शालिभद्र को !!