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तो इस मामले का न्याय मैं करूँ"। राजा ने उत्तर दिया, कि-अच्छी बात है, तुम्ही इसका न्याय करों।
धन्ना ने सेठ और उस ठग, दोनों को बुलवाया और न्याय करने के लिये ठग से कहा, कि-सेठ के यहाँ वहुत-सी आँखें गिरवी हैं । उन आँखों में यह पता कैसे लग सकता है, कि कौनसी आँख किसकी है ? इस लिये तुम्हारी जो औख सेठ के यहाँ गिरवी है, उसका नमूना लाओ और अपनी आँख ले जाओ । धन्ना के इस कहने से ठग पकड़ा गया । वह, आंख का नमूना कहाँ से दे सकता था? यदि नमूने के लिये अपनी आँख देता है, तो अंधा होता है। इस प्रकार उस काने की ठगी सिद्ध हुई और राजा ने उसे दण्ड दिया।
धन्ना के न्याय से गौभद्र सेठ बहुत हर्षित हुए। गौभद्र-सेठ ने अपनी कन्या का विवाह पन्ना के साथ कर दिया । उस कन्या का नाम सुभद्रा था ।
एक दिन धन्ना खिडकी में बैठा हुआ नगर को देख रहा था। उसने थोड़ें से भिखारियों को देखा, जो उसके कुटुम्बी ऐसे जान पड़ते थे ! धन्ना ने पता लगाया, तो मालूम हुआ, कि ये भिखारी मेरे ही