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. धन्ना, चलता हुआ और बहुत कुछ देखता हुआ एक नगर के बाहर आया । उस नगर का नाम राजगृह था। नगर के बाहर एक मुखा हुआ बाग था। उस सूखे हुए बाग में ही धन्ना रात के समय रहा । 'भाग्यशाली के पाँव जहाँ पडे, वहाँ क्या नहीं होता ?' इसके अनुसार जिस सूखे-बाग में धन्ना रात के समय रहा था, सबेरे वह सूखा बाग हरा दीखने लगा।
बाग के माली ने बाग हरा होने की सूचना बाग के मालिक सेठ का दी। यह सूचना पाकर सेठ बहुत हर्षित हुआ। सेठ ने धन्ना को अपने यहां बुलवाया। धन्ना, सेठ के यहाँ गया। सेठ ने धन्ना का भोजन कराया और बहुत सम्मान किया। फिर सेठ ने धन्ना से बातचीत की। बाग के हरा होने से तथा वातचीत से सेठ समा गया, कि यह कोई प्रतापी पुरुष है। धन्ना का प्रतापी पुरुष जानकर, सेठ ने अपनी कन्या का विवाह उसके साथ कर दिया ।
धन्ना, बड़ा भाग्यवान था। जहाँ उसके पाव पड़ते थे, वहीं धन का ढेर लग जाता था। धन्ना को यहाँ भी खूब धन मिला। यहाँ भी वह बड़ा सेठ होगया।
राजगृही में एक बार राजा का हाथी मस्त होगया । उस मस्त-हाथी को कोई भी वश में न कर सका।