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________________ वे तीनों भाई खूब दाड़े-धूपे, लेकिन कुछ न कमा सके । निराश होकर घर लौटे । घर में धन्ना के लाये हुए पलँग को रखा देखकर तीनों भाइयों ने धनसार सेठ से कहा, कि-"पिताजी ! अपने समझदार लड़के को देखो। यह पलंग तो मुर्दे का है इसे क्या घर में रखा जासकता है ? हम तो इस पलँग को घर में न रहने देंगे। इस प्रकार कहकर तीनों भाई उठे और उस पलँग को उठाकर पटक दिया। पटक देने से पलँग की पट्टी और पाये अलग-अलग हो गये और उसमें से बड़े कीमती-रत्न निकले। तीनों भाई चकित रह गये और मुँह में उँगली दबाकर उन रत्नों की ओर देखने लगे। सेठ ने तीनों लड़कों से कहा, कि-"कहो धन्ना को बड़ाई न सह सकनेवाले लड़को ! धन्ना की परीक्षा हो गई यो और बाकी है ?" तीनों भाई पिता से कहने लगे, कि-"हाँ पिताजी ! हाँ, हम सब तो न देख सकने वाले हैं और एक आपका धन्ना अच्छा है । आप हमारी कभी भी बड़ाई न करेंगे । एक बार गोदावरी में एक जहाज आया । जहाज में बहुत कीमती कराना भरा हुआ था। किराने का
SR No.023378
Book TitleHindi Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhirajlal Tokarshi Shah, Bhajamishankar Dikshit
PublisherJyoti Karayalay
Publication Year1932
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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