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:४: सज्जन, सम्बन्धी, जाति-न्याति में धन्ना की खूब बडाई होतीथी । धन्ना के तीनों बडे भाइयों से धन्ना की बड़ाइ सही न जाती । वे सदा ही कुढ़ा करते ।
सेठ ने सोचा कि लाओ, एक बार फिर इन सब की परीक्षा करूँ । इस प्रकार विचारकर सेठ ने अपने सब लड़कों को बुलाया। लड़कों को थोड़ी-थोडी सोने की मुहरें देकर सेठ ने सब से कहा, कि-इस बार भूल मत करना । सब ध्यान रखकर इन सोने की मुहरों से कमाई करना । संध्या के समय सब, घर को लौट आना
और अपनी आमदनी सब को बताना। सब लडके सोने की मुहरें लेकर चले । एक भाई इस तरफ गया और दूसरा भाई उस तरफ गया । इस तरह चारों भाई पृथक्-पृथक् होगये।
धना, बाजार में गया । बाजार में एक सुन्दर पलँग बिक रहा था, लेकिन बेंचनेवाला स्मशान का भंगी था, इसलिये कोई उसे लेता न था। पलँग को देखकर धन्ना ने विचार किया, कि पलँग में निश्चय ही कोई करामात है, इसलिये इस पलँग को लेना अच्छा है । इस प्रकार विचारकर धन्ना ने उस बिकते हुए पलंग को ले लिया ।