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दिया-"हा, लेकिन इसकी कीमत बहुत है" । राजकुमार ने पूछा, कि-"कितनी कीमत है ?' धन्ना ने कहा-"सवा लाख सोने की मुहरें" । राजकुमार बोला-"ये सवा लाख सोने की मुहरें लो और यह भेड़ा मुझे दो"। धन्ना ने भेड़ा राजकुमार को देकर राजकुमार से सवा लाख सोने का मुहरें ले ली।
धन्ना, कैसा भाग्यवान था, कि उसे ढाई-लाख सोने की मुहरं मिल गई ! उसके बड़े भाई बहुत दौड़े धूपे, लेकिन किस्मत के फूटे थे। उन्हें कोई आमदनी नहीं हुई। चारों भाई घर आये। सब लोग धन्ना की बड़ाई करने लगे। धन्ना का बड़ाई सुनकर उन तीनोंभाइयों के मुँह उतर गये । वे कहने लगे, कि-"धनाने तो जुआ खेला था । शत लगाना, जुआ ही कहलाता है । जुआ खेला था, उसमें कभी हार गया होता, तो क्या दशा होती ? जुआ खेलना, व्यापार नहीं कहलाता। व्यापार में धन्ना की परीक्षा करो !"
धनसार सेठ ने अपने बड़े लड़कों से कहा-"कि" लड़को ! पागल मत बनो । किसी को अच्छा देखकर प्रसन्न होना चाहिए, उसकी ईर्ष्या न करना चाहिए। पिता की बात सुनकर तीनों लड़कों ने उत्तर दिया, कि-"अच्छा, हम तीनों तो तो बेवकूफ हैं और आपका एक धन्ना हा समझदार है !"