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तीनों भाइयों के मुंह उतर गये। वे कहने लगे, कि-"धन्ना ने ठगाई की है । इसने बेचारे सेठ का उलटा कागज पढ़ लिया था। इस प्रकार ठगाई करना, व्यापार नहीं है। व्यापार में धन्ना की परीक्षा करने पर मालूम हो जावेगा, कि धन्ना प्रशंसा के योग्य है, या हम प्रशंसा के योग्य हैं।
धनसार-सेठ ने अपने तीनों लड़कों को समझाते हुए कहा-" बच्चो ! समझो । ईर्ष्यालु होना अच्छा नहीं है। तीनों लड़कों ने कहा-“ठीक, हम तो इर्ष्यालु हैं, एक आपका धन्ना ही अच्छा है।
तीनों भाई धन्ना की बड़ाई से जलने लगे। सेठ ने कहा, कि-"अच्छा मैं फिर से तुम चारों की परीक्षा करता हूँ" सेठ ने अपने चारों लड़कों को बुलवाया और उन्हें थोड़ी-थोड़ी सोने की मुहरें देकर कहा, कि-"इस बार होशियारी से काम लेना। इन सोने की मुहरों से व्यापार करके संध्या के समय घर को लौट आना और जो आमदनी हो, उससे सव को भोजन कराना !"
चारों भाई व्यापार करने चले । धन्ना के तीनभाई बहुत वूमे, लेकिन उनकी समझ में यही न आया, कि हम कौन-सा व्यापार करें।